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पाठक योजनाएँ – अक्तूबर 2020

प्रेम सहनशील और दयालु है।

प्रेम सहनशील और दयालु है।

4  
प्रेम सहनशील और दयालु है। प्रेम न तो ईष्‍र्या करता है, न डींग मारता, न घमण्‍ड करता है।

5  
प्रेम अशोभनीय व्‍यवहार नहीं करता। वह अपना स्‍वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुंझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है।

6  
वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्‍कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है।

7  
वह सब कुछ ढाँक देता है, सब कुछ पर विश्‍वास करता है, सब कुछ की आशा करता और सब कुछ सह लेता है।

8  
नबूवतें जाती रहेंगी, अध्‍यात्‍म भाषाएँ मौन हो जायेंगी और ज्ञान मिट जायेगा, किन्‍तु प्रेम का कभी अन्‍त नहीं होगा

9  
क्‍योंकि हमारा ज्ञान तथा हमारी नबूवत अपूर्ण हैं

10  
और जब पूर्णता आ जायेगी, तो जो अपूर्ण है, वह जाता रहेगा।

11  
मैं जब बच्‍चा था, तो बच्‍चों की तरह बोलता, सोचता और समझता था; किन्‍तु सयाना हो जाने पर मैंने बचकानी बातें छोड़ दीं।

12  
अभी तो हमें दर्पण में धुँधला-सा दिखाई देता है, परन्‍तु तब हम आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्‍तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊंगा, जिस तरह परमेश्‍वर मुझे जान गया है।

13  
अभी तो विश्‍वास, आशा और प्रेम-ये तीनों बने हुए हैं। किन्‍तु इन में से प्रेम ही सब से महान है।

1 Corinthians 13 in Hindi

1 Corinthians 13 in English

पाठक योजनाएँ – मई 2020

पाठक योजनाएँ – अप्रैल 2020