1
धन्य है वह मनुष्य जो दुर्जनों की सम्मति पर नहीं चलता, जो पापियों के मार्ग पर खड़ा नहीं होता, और जो उपहास-प्रिय झुण्ड में नहीं बैठता
2
पर उसका सुख प्रभु की व्यवस्था में है, और वह दिन-रात उस का पाठ करता है।
3
वह उस वृक्ष के समान है जो नहर के तट पर रोपा गया, जो अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते मुरझाते नहीं। जो कुछ धार्मिक मनुष्य करता है, वह सफल होता है।
4
पर अधार्मिक मनुष्य ऐसे नहीं होते! वे भूसे के समान हैं, जिसे पवन उड़ाता है।
5
अत: न अधार्मिक मनुष्य अदालत में, और न पापी मनुष्य धार्मिकों की मंडली में खड़े हो सकेंगे।
6
प्रभु धार्मिकों का आचरण जानता है। परन्तु अधार्मिक अपने आचरण के कारण नष्ट हो जाएंगे।