3
“धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं; क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
4
धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं; क्योंकि उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
5
धन्य हैं वे जो नम्र हैं; क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
6
धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं; क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे।
7
धन्य हैं वे, जो दयालु हैं; क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
8
धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है; क्योंकि वे परमेश्वर के दर्शन करेंगे।
9
धन्य हैं वे, जो मेल-मिलाप कराते हैं; क्योंकि वे परमेश्वर की संतान कहलाएँगे।
10
धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं; क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
11
“धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
12
खुश हो और आनन्द मनाओ; क्योंकि स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया था।